हिंदी साहित्य और समाज- हिंदी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करने से साहित्य और समाज के सम्बन्ध का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता हैं.
रहीम ने ‘वाकयात बाबरी’ का तुर्की से फारसी में अनुवाद किया था। कुछ मिश्रित रचना भी इन्होंने की है,’रहीम काव्य’ हिन्दी संस्कृत की खिचड़ी है और ‘खेट कौतुकम्’ नामक ज्योतिष का ग्रंथ संस्कृत और फारसी की खिचड़ी है। कुछ संस्कृत श्लोकों की रचना भी ये कर गए हैं।
अन्य के कर्मचारी अभद्र व्यवहार की शिकायत हेतु।
विद्यार्थियों द्वारा लिखे गए आवेदन पत्र के प्रमुख विषय –
नाथ पंथी साहित्य प्रामाणिकता की दृष्टि से संदिश्थ है। नाथ पंथ का उद्भव किस प्रकार से हुआ इस पर विद्वानों में मतभेद है। सिद्धों की जो सूची मिलती है उसमें से कई का सबंध नाथ परंपरा से भी था। राहुल सांकृत्यायन जी ने नाथ-पंथ को सिद्धों की परंपरा का ही विकसित रूप माना है। नाथ परंपरा में मत्येंद्र नाथ के गुरु जलंधर नाथ माने जाते हैं।
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हिंदी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केन्द्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी।
जयचंदप्रकाश और जयमयंकजसचंद्रिका, दोनों ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं हैं। केवल इनका उल्लेख सिंघायच दयालदास कृत ‘राठौड़ाँ री ख्यात’ में मिलता है जो बीकानेर के राज-पुस्तक-भंडार में सुरक्षित है। इस ख्यात में लिखा है कि दयालदास ने आदि से लेकर कन्नौज तक का वृत्तांत इन्हीं दोनों ग्रंथों के आधार पर लिखा है।
नाथ साहित्य में सैलानी का अनुभव नहीं है अपितु उसमें एक सांस्कृतिक यात्री का अनुभव है, जो प्रदेश की भाषा, संस्कृति, रीति -रिवाज, वेशभूषा आदि का निरीक्षण करता है।
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बोधा– आचार्य शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक कवि थे। पन्ना के राजदरबार में बोधा अक्सर जाया करते थे। राजदरबार में सुबहान (सुभान) नामक वेश्या से इन्हें बेहद प्रेम हो गया। महाराज को जब यह बात पता चली तो उन्होंने बोधा को छह महीने के देशनिकाले की सजा दे दी।
राज्य सरकार द्वारा शुरू की गयी जननी सुरक्षा Sahayta Hindi योजना के तहत पात्र महिलाये भी इस योजना का लाभ उठा सकती है ।
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